Friday, April 3, 2009

बेटा जो ठहरा


दामाद जी अस्पताल की जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर एवं बिल का भुगतान करके आ गए। डॉक्टर ने अस्पताल से छुट्टी दे दी थी तो वे कमला को एक वैन में आराम से लिटाकर घर ले आए। बेटियों की अथक सेवा से उसकी पीडा काफी कम हो गई थी। एक शाम निशा ने मां के बालों को संवारते हुए प्यार से पूछा, मां! तुम्हें यहां कोई तकलीफ तो नहीं है। नहीं बेटी! मां यदि किसी चीज की इच्छा हो तो बताओ मैं ला दूंगी। निशा ने फिर पूछा। कुछ समय मौन रहकर स्वर निकला, सुशील को बुला दो। निशा स्तब्ध रह गई। किस सुशील को? वह जो दस वर्ष पूर्व शादी करके अमेरिका चला गया और तब से आज तक उसने मां की कोई खोज-खबर नहीं ली। यहां तक कि मां की बीमारी का समाचार मिलने पर भी नहीं आया! मां की यह इच्छा आज बेटियों की सेवा को सुशील की तुलना में कम कर गई थी।